Thursday 1 December 2016

क्या "व्हाट्स- अप" फोटो शॉप और अफवाह फैलाने वालों के लिए खुला मैदान बन गया है ?

क्या "व्हाट्स-अप" फोटो शॉप और अफवाह फैलाने वालों के लिए खुला मैदान बन गया है ?

कल व्हाट्स-अप पर ब्रेकिंग न्यूज़  के रूप मे कुछ स्क्रीन आए, जिनमे लिखा था कि पहली जनवरी 2017 से पूरे देश में सभी किसानों के कर्जे माफ होंगे,सभी टैक्स समाप्त होंगे आदि आदि | स्क्रीन भी हूबहू ऐसी बनायी गयी थी कि असली ही लगे पर किसी टी॰ वी॰ चैनल का नाम नजर नहीं आ रहा था | एक बार तो पढ़ा लिखा आदमी भी गच्चा खा जाए | जब जांच की तो पता चला की यह खबर फर्जी थी।

कुछ समय से ए॰ बी॰ पी॰ न्यूज़ चेनल, सोशल मीडिया पर वाइरल हुये ऐसे समाचारों की जांच पड़ताल कर दर्शकों को बताता है कि मैसेज गलत है या सही | पिछले साल डेढ़ साल से कुछ लोगों द्वारा गलत खबरों व अफवाहों  का निर्माण कर जानबूझ कर पोस्ट किया जा रहा है | बड़ी अफवाए फैलाई जा रही है | लोगों को भ्रमित किया जा रहा है | धीरे धीरे लोगों का व्हाट्स-अप से भरोसा ही समाप्त हो रहा है |

सोशल मीडिया मे जब "ओरकुट" आया तो बड़ा कोतूहल भरा लगा | अपनी खुशी,गम और व्यक्तिगत समाचार को सॉफ्ट कॉपी के रूप मे सार्वजनिक रूप से लोगों तक पहुंचाने का आसान तरीका था | साथ साथ इंटरनेट तो था ही पर वो पूर्ण रूप से व्यक्ति से व्यक्ति को सॉफ्ट कॉपी में चिट्ठी लिखने जैसा लगने लगा था | "ओरकुट" को अपनी प्राकृतिक मौत के हवाले कर दिया फेसबुक ने | जब फेसबुक आया तो मानों तहलका मच गया हो | शुरू शुरू में लोगों ने बड़ी ईमानदारी से समाचार,फोटो ,विचार आदि प्रस्तुत किए ,बड़ा अच्छा लगता था ,जब कोई भुला बिसरा दोस्त 40 या 50 वर्ष बाद हैलो हाय करता और अपने व्यक्तिगत विचार साझा करता |

देखते ही देखते "व्हाट्स-अप" आया और छा गया | लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि सोशल मीडिया के इतने शक्तिशाली माध्यम का इस कदर दुरुपयोग भारत में होगा |
तस्वीर नाईजेरिया की ,बता रहे है भारत की ,तस्वीर सन 2012 की ,बतायी जा रही है 2016 की |तस्वीर किसी की,बताएँगे किसी की,किसी की गर्दन से ऊपर का भाग फोटो से काट कर किसी और के फोटो से जोड़ दिया जाता है | इस तरह फोटो शॉप के कलाकारों ने सत्यानाश कर रखा है |

दंगा ,फसाद फैलाने के उद्देश्य से एक समुदाय विशेष की भावनाओं को दूसरे के खिलाफ व्हाट्स-अप भड़काना, कुछ लोगों का मुख्य पेशा हो गया है |
साइबर कानून के रहते हुये और पुलिस के सख्त रवैये के बावजूद सोशल मीडिया पर झूठी खबरों का हर रोज़ ढेर लग जाता है |

आज कल नोट बंदी को लेकर भी तरह तरह की अफवाहें फैलायी जा रही है ,जैसे 2000 का नोट छ्ह महीने बाद में बंद होने वाला है , देश मे 90 % लोगों के पास बैंक अकाउंट नहीं है , नए 500 और 2000 के नोट का रंग उतर जाता है ,इसमे प्रिंटिंग मिस्टेक है ,इसमे मराठी मे गलत लिखा गया है आदि आदि | ये और इनके जैसी बहुत सारी बातों को खबर के रूप मे  व्हाट्स अप पर वाइरल कर जनता को गुमराह करने का काम बड़े ज़ोर शोर से चल रहा है |

आम जनता से आशा की जाती है कि  व्हाट्स अप मिलने वाले हर समाचार पर विश्वास न करें | उस समाचार को अखबार,रेडियो ,टी॰वी॰पर क्रॉस चेक अवश्य करले |  इस कलयुग के जमाने में हम सभी को बहुत ही सतर्क व सावधान रहने की आवश्यकता है | अस्तु

करुणा शंकर ओझा
email: ks_ojhaji@yahoo.com

Tuesday 15 November 2016

विपक्षी दल या विरोधी दल

विपक्षी दल  या विरोधी दल 

16 नवम्बर से संसद का शीत कालीन सत्र प्रारम्भ हो रहा है | लोक सभा स्पीकर ने सर्व दलीय बैठक कर ली है | राजनैतिक दल भी अपने अपने सांसदों की बैठक कर रहे है | विपक्षी दलों की इन बैठकों में अमूमन यह चर्चा हो रही है कि कैसे सरकार को घेरा जाय और सत्ता पक्ष के दल यह तैय्यारी कर रहे है कि विपक्ष के आक्षेपों का क्या और कैसे उत्तर दिया जाय |
संसद में देश हित ,जनहित के विषयों पर चर्चा और बहस एक स्वस्थ प्रजातंत्र की निशानी है | इन चर्चाओं से अच्छे सुझाव सरकार के ध्यान में लाये जाय ताकि जनहित के कानून बनाये जा सके और सरकार के सभी निर्णय ठोक बजा कर लिए जा सके |
संसद की कार्यवाही पर प्रति मिनट करोड़ों रूपये खर्च होते है |  यह रुपया इस देश की जनता ने टैक्स के रूप में सरकारी खजाने में जमा करवाया हुआ होता है |
यह देखने में आया है कि विपक्ष बड़े ही आक्रामक रूप से सरकार के हर निर्णय का विरोध करता है | कभी कभी तो शिष्टाचार ,अनुशासन व भाषा की सारी मर्यादाएं लाँघ दी जाती है | सांसदों की आपस में हाथापाई ,धक्का मुक्की ,शोर शराबा तो आम बात है | ज्यादातर सांसद तो भूल जाते है कि देश की जनता उन्हें टी. वी .पर लाइव देख रहे है |
कभी कभी विपक्ष, विपक्ष न लगकर सरकार के दुश्मन लगने लगता है | संसद प्रजातंत्र का मंदिर होता है ,उसमे स्वस्थ परम्पराओं का पालन अपेक्षित है, पर होता है इसका उल्टा | संसद का एक पूरा सत्र जी. एस. टी. बिल की भेंट चढ़ गया |करोड़ों रूपये खर्च हो गए और संसद में उछल कूद को देश की समस्त जनता ने देखा |प्रश्न यह उठता है कि विपक्ष को विपक्ष की भूमिका निभानी है या विरोध की ? ऐसा लगता है कि प्रजातान्त्रिक तरीके से और भारी बहुमत से चुनी हुई सरकार के हर निर्णय ,हर निर्देश ,हर कार्यक्रम ,हर प्रस्ताव का विरोध करना की विपक्ष का काम रह गया है | सरकार कुछ काम तो जनहित में करती ही होगी पर विपक्ष उन कामों की अनदेखी कर आलोचना में लगा रहता है |
वर्तमान शीत कालीन सत्र भी 500 ,1000 के करेंसी नोटों के चलन को बंद करने के सरकार के निर्णय के विरोध में ही बर्बाद न हो जाय और एक बार फिर जी. एस. टी. के मुद्दे की तरह इस मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप में ही संसद का समय जाया न हो जाय |
क्या विपक्ष वास्तव में विपक्ष की भूमिका निभा कर सरकार की आलोचना करते हुए भी निरंतर विरोध का सिलसिला बंद नहीं कर सकता ? क्या नयी सोच के साथ संसद में स्वस्थ परम्पराएँ शुरू नहीं की जा सकती ? क्या जनहित और राष्ट्र हित के सभी कार्यों में विपक्ष को भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए ?
इस के लिए आवश्यक है की विपक्षी दल अपने को विरोधी दल न समझ कर विपक्षी दल समझे | आखिर सांसद पक्ष का हो या विपक्ष का , वह इस देश का सांसद है ,सभी सांसदों ने भारत के प्रति वफ़ादारी और जनता की सेवा का व्रत लिया है तो फिर यह लगातार विरोध क्यों ? सुझाव है कि प्रत्येक सांसद, प्रत्येक सत्र में प्रति दिन उस शपथ को पढ़ कर ही संसद में कदम रखें जो उन्होंने सांसद बनते समय ली थी |जनता के कल्याण के बारे में सोचें | अपने संकुचित दायरे से व अपने या अपने दल के स्वार्थ से ऊपर उठ कर भारत के लिए काम करें जिस काम के लिए इस देश की जनता ने उन्हें चुना है |

करुणा शंकर ओझा
ईमेल : ks_ojhaji@yahoo.com
                 

Wednesday 21 September 2016

बहुत हो चुका

 जब से कश्मीर के "उरी" के आतंकी हमले मे देश के 17 जवानों ने बलिदान दिया है तब से ही पूरे देश मे लोगों मे आक्रोश और गुस्सा फूट पड़ा है | कहीं जुलूस तो, कहीं सभाए, कहीं पाकिस्तान को गालियां तो कहीं मोदीजी को भला बुरा कहना | टी वी चेनल मोदीजी के पुराने विडियो क्लिप बार बार बता कर कटाक्ष करने मे नहीं चूकते |

बहुत लोग चाहते है की पाकिस्तान को तुरंत जवाब दिया जाए, हालांकि सेना ने यह स्पष्ट कर दिया है की माकूल जवाब दिया जाएगा, परंतु जवाब का समय व स्थान सेना तय करेगी | मोदी सरकार की तरफ से स्पष्ट कर दिया गया है कि अपराधियों को सजा दी जाएगी और जवानों पर हमला करवाने वालों को बक्षा नहीं जाएगा। फिर भी जनता तो जनार्दन होती है और गुस्सा उफान पकड़ता जा रहा है |

यह साधारण सी बात है की अगर कुछ करना है इसका अर्थ हुआ पाकिस्तान से युद्ध करना  |  कुछ लोग सलाह दे रहे है की केवल आतंकी ठिकानों पर हमला करके उन्हे तबाह किया जाए| कुछ लोग इसके साथ ही  पाकिस्तान पर आर्थिक पाबंदी, भारत से बहने वाली नदियों से पाकिस्तान मे जाने वाले पानी को रोकना और कुछ लोग तो पाकिस्तानी कलाकारों,गायकों ,खिलाड़ियों को भारत से निकाल बाहर करने कि सलाह दे रहे है |
एक महत्वपूर्ण सुझाव आया है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग थलग किया जाए |
कुल मिला कर एक बात तो स्पष्ट है कि सेना की इच्छा शक्ति मे कोई कमी नहीं है, न ही सरकार की इच्छा शक्ति मे | संयोगवश पाकिस्तान के मुक़ाबले हम सैन्य शक्ति तथा आर्थिक रूप से भी मजबूत है |

अब ऐसी परिस्थितियों मे यदि आतंकी ठिकानों पर हमला बोला जाता है तो वह युद्ध मे परिवर्तित होना ही है |इससे पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को आड़े हाथों लेने का मौका मिल जाएगा और पाकिस्तान को अलग थलग करने की दिशा मे बहुत बड़ी रुकावट आ जाएगी | अब अगर युद्ध होता है तो उसके परिणाम के लिए भी हमे तैयार रहना चाहिए|

पाकिस्तान से भारत के युद्ध मे चीन का क्या रुख रहेगा, इस बारे मे सोचने की जरूरत है, क्योंकि हम जिसे जम्मू और कश्मीर कहते है उसमे से उत्तर पूर्व मे "अकसाई चीन" पर चीन का ही कब्जा है ,उत्तर मे "काराकोरम" की पहाड़ियों वाले क्षेत्र पर भी चीन का कब्जा है | पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर(पी॰ ओ॰ के॰ ) के एकदम उत्तरी छोर से पाकिस्तान के दक्षिण के बलूचिस्तान मे स्थित "ग्वादार बन्दरगाह" तक हजारों किलोमीटर की सड़क परियोजना पर काम चल रहा है ,इस सड़क को चार या छ वाहन चलाने जितना चौड़ा "हाइ वे" के रूप मे विकसित किया जा रहा है, इस सड़क से इस्लामाबाद ,लाहोर,फ़ैसलाबाद,मुल्तान,करांची जैसे प्रमुख शहर जुड़ेंगे | साथ ही इसी मार्ग से लगते हुये क्षेत्र पर रेल लाईन बिछाने का काम भी गति पकड़ रहा है |

यह पूरी परियोजना "चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडॉर"(सी॰ पी॰ ई ॰सी॰ )  के नाम से जानी जाती है | इस पूरे प्रोजेक्ट पर चीन ने लाखों करोड़ डॉलर लगाए है | इसका मकसद है कि चीन से मिडिल ईस्ट के देशों ,अफ्रीका और यूरोप के देशों को निर्यात करने वाले माल की ढुलाई का काम तीव्र व कम लागत मे हो | फिलहाल इन देशों मे माल भेजने के लिए चीन को बंगाल की खाड़ी होते हुये ,हिन्द महा सागर और अरब सागर होते हुटे समुद्री मार्ग से माल की ढुलाई करनी पड़ रही रही है ,यह रास्ता लंबा होने से माल पहुँचने मे कई दिन लग जाते है और ढुलाई पर खर्च भी बहुत ज्यादा आता है | इस नए कॉरीडोर से समय व खर्च मे भारी कमी आएगी | दूसरे शब्दों मे पाकिस्तान और पी ॰ओ ॰के॰ को चीन अपने देश के किसी राज्य के रूप मे इस्तेमाल कर रहा है |पूरे पाकिस्तान मे व पी॰ ओ ॰के॰ मे चीन के प्रतिनिधियों और यहाँ तक कि सैनिकों का बेरोकटोक आवागमन हो रहा है |

इन परिस्थितियों मे जब भी भारत पाकिस्तान पर हमला करेगा तो चीन तो निश्चित रूप से पाकिस्तान का ही साथ देगा, क्योंकि चीन की आर्थिक स्थिति के लिए पी॰ ओ॰ के॰ के "खूंजेराब" से बलूचिस्तान मे "ग्वादार बन्दरगाह" तक के कॉरीडोर का बड़ा हाथ है | चूंकि यह कॉरीडोर पी॰ ओ॰ के॰ से गुजरता है इसलिए चीन कभी नहीं चाहेगा की पी॰ ओ॰ के ॰या पाकिस्तान के किसी भी भाग पर अन्य किसी देश का दखल या कब्जा हो |
दूसरे शब्दो मे पाकिस्तान से युद्ध का मतलब सीधे सीधे चीन से युद्ध है | चीन परोक्ष रूप से भले ही युद्ध न करें परंतु पाकिस्तान को सैन्य सामग्री ,हथियार ,टैंक, बम वर्षक हवाई जहाज और आर्थिक मदद जरूर करेगा |
इसलिए पाकिस्तान से सीधे युद्ध मे कूद पड़ने कि बजाय पूरी तैयारी और सूझबूझ से कदम रखना होगा |
पाकिस्तान को सबक सिखाना अत्यंत जरूरी है परंतु जल्दबाज़ी मे जीती हुई बाज़ी हमे हारना नहीं है |

करुणा शंकर ओझा
email: ks_ojhaji@yahoo.com        

Tuesday 20 September 2016

War or Peace with Pakistan

कश्मीर के "उरी" की घटना के बाद चारों तरफ शोर हो रहा है कि भारत को पाकिस्तान पर तुरंत आक्रमण करके मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए तभी सेना के जवानों का मनोबल बढ़ेगा |
युद्ध शुरू करना सरल है परन्तू उसे समेटना इतना आसान नहीं है | युद्ध मे हमारे जवानों को भी मौत के मुंह मे ढ्केलने जैसा होगा | हम हज़ार मारेंगे तो वो भी हमारे 100-200 जवानों को तो मारेंगे ही | 
इससे अच्छा यह है कि पाकिस्तान मे स्थित आतंकवादी ट्रेनिंग केम्प को निशाना बनाया जाय,जहां से हमारे ऊपर हमले की उत्पत्ति होती है |
दूसरा हाफिज़, मसूद और शालाडुदीन जैसे सरगनाओं को उनके ठिकानों पर तबाह किया जाय |
तीसरा,कश्मीर मे रहने वाले उनलोगों से निपटा जाय जो पाकिस्तानी आतंकवादी को पनाह देने,उनकी सार संभाल लेने और उनको गुप्त सूचना पहुंचाने का काम कर रहे है| इन लोगों को गिरफ्तार करके कश्मीर की जेलों मे रखने की बजाय अंडमान निकोबार की जेलों मे कम से कम दो वर्ष तक रखा जाए |
पाकिस्तान की सीमा पर उनकी फौज से आमने सामने लड़ाई का कोई परिणाम नहीं मिलने वाला है , इससे हमारे जान माल की हानि अधिक होने वाली है |


करुणा शंकर ओझा
email: ks_ojhaji@yahoo.com

War or Peace with Pakistan

कश्मीर के "उरी" की घटना के बाद चारों तरफ शोर हो रहा है कि भारत को पाकिस्तान पर तुरंत आक्रमण करके मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए तभी सेना के जवानों का मनोबल बढ़ेगा |
युद्ध शुरू करना सरल है परन्तू उसे समेटना इतना आसान नहीं है | युद्ध मे हमारे जवानों को भी मौत के मुंह मे ढ्केलने जैसा होगा | हम हज़ार मारेंगे तो वो भी हमारे 100-200 जवानों को तो मारेंगे ही | 
इससे अच्छा यह है कि पाकिस्तान मे स्थित आतंकवादी ट्रेनिंग केम्प को निशाना बनाया जाय,जहां से हमारे ऊपर हमले की उत्पत्ति होती है |
दूसरा हाफिज़, मसूद और शालाडुदीन जैसे सरगनाओं को उनके ठिकानों पर तबाह किया जाय |
तीसरा,कश्मीर मे रहने वाले उनलोगों से निपटा जाय जो पाकिस्तानी आतंकवादी को पनाह देने,उनकी सार संभाल लेने और उनको गुप्त सूचना पहुंचाने का काम कर रहे है| इन लोगों को गिरफ्तार करके कश्मीर की जेलों मे रखने की बजाय अंडमान निकोबार की जेलों मे कम से कम दो वर्ष तक रखा जाए |
पाकिस्तान की सीमा पर उनकी फौज से आमने सामने लड़ाई का कोई परिणाम नहीं मिलने वाला है , इससे हमारे जान माल की हानि अधिक होने वाली है |


करुणा शंकर ओझा
email: ks_ojhaji@yahoo.com

Monday 19 September 2016

जन्नत से जहन्नुम तक - कौन है इसे बदसूरत करने वाले

फिल्म आरज़ू जैसी कई लोकप्रिय फिल्मों की शूटिंग 1950 से 1980 तक कश्मीर की वादियों में हुआ करती थी | कश्मीर की वादी और उसकी खूबसूरती को लेकर अनेक मधुर फिल्मी गीत लिखे गए ,गाये गए और फिल्माए गए | ये सारे गीत इतने रोमांटिक है कि अब भी हर उम्र का व्यक्ति यदा कदा गुन गुनाता है |जन्नत जैसी खूबसूरती को भला कौन नहीं देखना और महसूस करना चाहेगा |
1990 आते आते दहशत की आग लगने लगी और फिल्मों की शूटिंग ,डल झील के शिकारों और हाउस बोट में सैलानियों की संख्या नहीं के बराबर होने लगी | कौन जाएगा मरने वहाँ या यूं कहिए मौज मस्ती करने की बजाय डरा डरा सैलानी अपने को और अपने परिवार को खतरे मे क्यों डालेगा ?
2011 के जून के महीने में मैं व मेरी पत्नी हिम्मत करके श्रीनगर पहुँच गए | हवाई अड्डे पर उतरे तो लगा की यात्रियों से ज्यादा तो सुरक्षा कर्मी थे वहाँ | गीलानी भी हमारी फ्लाइट में ही दिल्ली से श्रीनगर आए थे उस दिन | मैंने सोचा शायद इस नेता की वजह से ऐसा नज़ारा है | परंतु हवाई अड्डे के बाहर आते ही सड़क पर भी थोड़े थोड़े फासले पर सुरक्षा कर्मी नज़र आए | बख्तर बंद गाडियाँ यहाँ वहाँ दौड़ती नज़र आई |

डल झील वीरान सी ,होटल मे 200-250 की क्षमता के सामने बमुसकिल 10-15 यात्री | मुग़ल गार्डेन्स ,झरना व अन्य दृशनीय स्थल पर जाने से पहले रास्ते में ही जगह जगह चेकिंग और सुरक्षा कर्मी | स्थानीय बाज़ार ग्राहक के इंतज़ार में ,दूकानदारों का अच्छा बर्ताव ,खुल कर बात ,सामान्य स्थिति के इंतज़ार में | शिकारे वाले भी खुश मिजाज और यात्री मिला तो जैसे लॉटरी खुली ऐसी खुशी | होटल मालिक और स्टाफ सभी यात्रियों की दिल से प्यार से सेवा के लिए तत्पर | हम जैसे शाकाहारी यात्रियों के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन की व्यवस्था | लाल चौक पर हमारा गाइड दीवारों पर लगे गोलियों के निशान हमे दिखाते हुये हमसे भी ज्यादा दुखी |  डल झील पर स्थानीय नागरिकों से बातचीत में भी कहीं भी दुर्भावना जैसी बात नहीं | कैसा लगता है कश्मीर आपको के उत्तर में बहुत अच्छा सुनने पर अत्यंत खुश | लंबे चौड़े नागरिकों ने राह चलते हुये भी हम लोगों के साथ फोटो खिंचाने पर कोई परहेज नहीं |
अब 2016 में जो चित्र नज़र आ रहा है या यह कहिए मीडिया दिखा रहा है उस पर विस्वास नहीं होता |
चंद अलगाव वादी कश्मीर नहीं है ,चंद पत्थर फेकने वाले पूरा कश्मीर नहीं है | बस इन अलगाव वादियों और इसी किस्म के राजनेताओं से घाटी को मुक्त करा दो ।कश्मीर की घाटी जन्नत के रूप में नज़र आने लगेगी |
कश्मीर का सामान्य नागरिक,व्यापारी,विद्यार्थी,महिलाएं ,मजदूर और शिकारे ,हाउस बोट वाले उस समय का इंतज़ार कर रहे है जब घाटी को इन अलगाव वादियों से मुक्ति मिलेगी |
धरती पर स्वर्ग को जहन्नुम बनाने वालों की पहचान हो चुकी है ,सिर्फ उन्हे वहाँ से हटाना है |
करुणा शंकर ओझा
email: ks_ojha@yahoo.com

Saturday 20 August 2016

न्यायपालिका और प्रजातंत्र

मुंबई हाई कोर्ट ने दही हांड़ी उत्सव पर हांड़ी की ऊँचाई 20 फीट और उत्सव में भाग लेने वाले प्रति भागियों की आयु सीमा 18 वर्ष तय कर ली है |
यह उत्सव सदियों से मनाया जाता रहा है | उत्सव और मेले समाज में जोश भरने का काम करते है | शादी भी अग्नि की साक्षी में पंडित बुलाकर लड़की लड़के के माँ बाप कर सकते है परन्तु समाज की कुछ परम्पराएँ रहती है | बकायदा बारात जाती है ,नाच गाना हँसी मजाक होता है और संस्कार की रस्म भी पूरी की जाती है | इसी तरह सारे उत्सवों को मनाने की परम्पराएँ रही है ,उसी के अनुसार उनको मनाया जाता है |
समाज के लोग मिलते जुलते है ,एक दूसरें को अभिवादन करते है ,खुशियाँ आदान प्रदान करते है | छोटे बड़े अमीर गरीब सब उल्लास के साथ व बिना भेदभाव के उत्सव का आनंद लेते है |इससे आपसी भाई चारा बढ़ता है और एकता बढती है |
कहा जाता है कि समाज के अपनाये जाने वाले रीति रिवाज़ ही कानून का आधार होते है | कानून बनाते वक्त समाज की मानसिकता व परम्परा को ध्यान में रखा जाता है | अगर ऐसा नहीं होता तो हिन्दू मैरिज एक्ट में मैरिज की परिभाषा में अग्नि की साक्षी तथा सात फेरों का जिक्र  नहीं होता |
अब दही हांड़ी पर फैसले की बात करें तो न्यायपालिका ने खट से फैसला सुना दिया और सीमा निर्धरित कर दी | |फैसले के पक्ष में तर्क दिया गया कि दही हांड़ी में दुर्घटनाएं होती है ,कुछ लोगों की मौत तक हो जाती है आदि आदि | अगर इसी तर्क को मान लें तो हर वर्ष मक्का मदीना में होने वाले हज में कुछ लोगों का देहांत हो जाता है |अक्सर भगदड़ मचती है आदि आदि | तो क्या वहां की न्यायपालिका ने इसमें दखल अंदाजी की ? जो होता है उस पर पूरा कंट्रोल वहां की सरकार का होता है |
हमारे यहाँ भी कानून और व्यवस्था के लिए पूरी सरकारी मशीनरी लग जाती है और दही हांड़ी तो क्या यह सरकारी मशीनरी कुम्भ मेले जैसे दुनिया के सबसे बड़े मेले के आयोजन को बखूबी अंजाम देते है |
दही हांड़ी मामले में भी न्यायपालिका को टांग अड़ाने की बजाय इस उत्सव की व्यवस्था व सुरक्षा स्थानीय राज्य सरकार पर छोड़ देनी चाहिए थी |
इसी संदर्भ में भारतीय न्याय पालिका ने गरबा नाचने की समय सीमा 10 बजे रात्री तक करके उस त्यौहार को मनाना लगभग बंद ही करवा दिया है | गरबा रात्रि में दस बजे शुरू होते थे तो अब उसे दस बजे समाप्त करना होता है | तर्क है ध्वनी प्रदूषण होता है |इसी तरह दीपावली पर पटाखे फोड़ने पर दुर्घटनाओं का तर्क देकर समय सीमा लगा दी | गणेश,गौरी या दुर्गा विसर्जन में पर्यावरण का तर्क दिया गया | मकर सक्रांति पर पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध के लिए पक्षियों के मरने का तर्क दिया गया |
भारत में कानून सबके लिए बराबर है तो फिर न्यायपालिका सड़कों पर और यहाँ तक की रेलवे स्टेशनों के ठीक बाहर यात्रियों के आने जाने के रास्ते को रोक कर नमाज़ पढने पर छुप क्यों है ? ताजियों की ऊँचाई पर रोक क्यों नहीं ? बारा वफात पर बड़े बड़े स्पीकर पर कान फोड़ ध्वनी पर क्यों है छुप्पी ? पांच बार अज़ान पर न तो ध्वनी प्रदूषण होता है न लोगों की नींद और शांति में खलल पड़ता है ?
न्यायपालिका को अपनी गरिमा बरकरार रखते हुए प्रशाशनिक और विधायिका के कार्यों में दखल अंदाजी से बचना चाहिए |        

करुणा शंकर ओझा
EMAIL:ks_ojhaji@yahoo.com